इस्लाम में निकाह को एक पवित्र और स्थायी रिश्ता माना गया है, जो जिम्मेदारी और इज्जत पर आधारित होता है. लेकिन कुछ जगहों पर निकाह मुताह नाम से एक अस्थायी निकाह की बात सामने आती है, जिसे लेकर लोगों में अलग-अलग राय देखने को मिलती है. आखिर क्या है ये निकाह मुताह? इस बारे में पूरी जानकरी करने के लिए लोकल 18 ने अलीगढ़ के चीफ मुफ्ती मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन से बातचीत की. मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन बताते हैं कि निकाह मुताह को इस्लाम में असली निकाह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह अस्थायी तौर पर कुछ शर्तों के साथ किया जाने वाला संबंध होता है.
कैसे आया सामने
मौलाना इफराहीम के अनुसार, निकाह मुताह में एक तय समय सीमा होती है. जैसे एक दिन, एक हफ्ता या एक महीना और उस अवधि के बाद यह रिश्ता अपने आप खत्म हो जाता है. इसमें तलाक की आवश्यकता नहीं होती. इस तरह का अमल इस्लाम में नाजायज और हराम माना गया है. हां, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में एक समय के लिए इसकी इजाजत दी गई थी. जब जंगों का दौर था और लोग महीनों तक अपने घर-परिवार से दूर रहते थे. उस वक्त फितने या गुनाह से बचने के लिए अस्थायी तौर पर यह अनुमति दी गई थी.
कोई गुंजाइश नहीं
मौलाना इफराहीम बताते हैं कि बाद में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ने खुद इस पर मनादी कर दी और इसे हमेशा के लिए खत्म कर दिया. अब कयामत तक के लिए निकाह मुताह को हराम कर दिया गया है. आज जो लोग निकाह मुताह करते हैं, वे दरअसल एक अस्थायी मजे या संबंध के लिए ऐसा करते हैं और उसे जायज ठहराते हैं. ये इस्लाम की नजर में बिल्कुल गलत है. इस्लाम में इस तरह के निकाह या अस्थायी संबंध की कोई गुंजाइश नहीं है.

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