
आपने कभी सोचा है कि जिस तरबूज के बीज को खाते वक्त आप थूक देते हैं, उसी के नाम पर विदेशी कंपनियां करोड़ों कमा रही थीं? जी हां… वो बीज जो आपके लिए कचरा रही होगी, वही चीन जैसे देश भारत में लाखों टन भेजकर किसानों की कमर तोड़ रहे थे। अब सरकार ने इस पर सख्ती दिखाई है और वॉटरमेलन बीज के आयात पर पूरी तरह रोक लगा दी है।
83,000 टन से ज्यादा विदेशों से आया बीज
वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ पिछले साल भारत ने 83,812 टन (83812000 किलो) तरबूज के बीज आयात किए। जबकि पिछले तीन सालों का औसत केवल 40,000 टन के करीब था। यह संख्या अचानक दोगुनी कैसे हो गई? इसका जवाब आसान है और वह है सस्ते विदेशी बीज और लापरवाही का नतीजा।
देसी बीज का हाल बेहाल
इस आयात की वजह से देसी बीज उत्पादक और किसान बुरी तरह प्रभावित हुए। भारत में हर साल करीब 60 से 65 हजार टन बीजों की जरूरत होती है, लेकिन देश में उत्पादन केवल 40,000 टन ही हो पाता है। बाकी 20–25 हजार टन की भरपाई के लिए विदेशी बीजों पर निर्भरता बढ़ गई थी।
दुश्मन देश चीन से आ रहा था ये बीज
ये बीज ज्यादातर चीन जैसे देशों से आ रहे थे, जो कि भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक चुनौती भी माने जाते हैं। किसानों को सस्ते दाम पर ये बीज तो मिल रहे थे, लेकिन इनसे मिट्टी की उर्वरता घट रही थी, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता बढ़ रही थी और परंपरागत खेती बर्बादी के कगार पर आ गई थी।
सरकार ने अब लगाया ब्रेक
लघु उद्योग भारती और किसान संगठनों के दबाव में आकर केंद्र सरकार ने अब इन बीजों के आयात पर पूरी तरह रोक लगा दी है। अब से कोई भी बिना लाइसेंस और निगरानी के बीज नहीं मंगा सकेगा।
किसानों को मिलेगा 8 महीने का रोजगार
भारतीय किसान संघ के राजस्थान राज्य महासचिव तुलचराम सीवर का कहना है कि अब देसी बीजों की मांग बढ़ेगी और इससे सीमांत किसानों को बीज की प्रोसेसिंग, सुखाने और सफाई में लगभग 8 महीने तक रोजगार मिलेगा।
अब देसी बीजों की चांदी
विदेशी बीज 15-20% तक सस्ते जरूर थे, लेकिन अब जब उनके आयात पर पाबंदी लग गई है, तो देसी बीजों की कीमत और मांग दोनों बढ़ेंगी। इसका सीधा फायदा मिलेगा हमारे किसानों को।
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