मौजूदा दौर में भारत के ट्रेड को लेकर दो बड़ी समस्याएं हैं. पहली समस्या अमेरिका का टैरिफ है. भारत के प्रोडक्ट्स पर 50 फीसदी का टैरिफ काफी नुकसान पहुंचा रहा है. भले ही अमेरिका के साथ भारत का एक्सपोर्ट बढ़ा हो, साथ ही भारत के ओवरऑल एक्सपोर्ट में भी बढ़ोतरी देखने को मिली हो, लेकिन टैरिफ और ट्रेड डील पर कोई समझौता ना हो से भारत से विदेशी निवेशकों की बेरुखी शेयर बाजार से साफ देखने को मिल सकती है. भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील कब पूरी होगी? टैरिफ हटेगा या नहीं? ये वक्त के गर्भ में छिपी बात है. इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सका है. जब तक दोनों देश सभी बातों पर एकमत नहीं हो जाते तब तक भारत को ये झेलना होगा?
वहीं दूसरी परेशानी अमेरिकी टैरिफ से भी बड़ी होती हुई दिखाई दे रही है. ये वो परेशानी है, जिससे पीछा छुड़ाने के लिए भारत को किसी से बात करने की जरुरत नहीं. इसके लिए देश की सरकार को खुद ही कदम उठाना होगा. ये परेशानी है चीन के साथ बढ़ते ट्रेड डेफिसिट की. जोकि मौजूदा समय में 100 अरब डॉलर के पार चला गया है. जिसकी वजह से भारत की कमाई पर काफी असर पड़ता है. सच्चाई ये भी है कि भारत चीन के सामान पर काफी निर्भर है, लेकिन चीन के साथ भारत का ट्रेड डेफिसिट ऐसे दीमक की तरह है, जो कि भारत के एमएसएमई को लगातार खोखला कर रहा है, साथ ही देश की इकोनॉमी को भी नुकसान पहुंचा रहा है |
इस बीमारी से बचने के लिए भारत सरकार एक बड़ा ऐलान कर सकती है. ये ऐलान बजट 2026 में हो सकता है. इस ऐलान से चीन की नींद हराम हो सकती है. जानकारी के अनुसार भारत इंपोर्ट पर निर्भरता को कम करने के लिए कई ऐसे ऐलान कर सकता है, जिससे भारत का ट्रेड डेफिसिट कम हो सकता है. इन ऐलानों से उन देशों को काफी परेशानी हो सकती है, जिनके साथ भारत का ट्रेड डेफिसिट काफी बड़ा है. ये देश खासकर वो सकते हैं, जिनके साथ भारत का नॉन ऑयल ट्रेड ज्यादा है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर भारत सरकार ऐसा क्या करने जा रही है |
बजट में लिया जाएगा बड़ा फैसला
भारत व्यापार घाटे को कम करने और सिंगल सोर्स सप्लाई चेन पर निर्भरता कम करने के लिए उन प्रोडक्ट्स पर सीमा शुल्क बढ़ाने और लक्षित प्रोत्साहन देने पर विचार कर रहा है, जिनका इंपोर्ट लोकल प्रोडक्शन के बावजूद अधिक बना हुआ है. इस प्रस्तावित पहल को आगामी बजट में पेश किया जा सकता है. इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिनके लिए हम कुछ भौगोलिक क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर हैं. हम इंपोर्ट से जुड़े जोखिम को कम करना चाहते हैं. अधिकारी ने आगे कहा कि कुछ वस्तुओं को वित्तीय सहायता दी जा सकती है, जबकि अन्य पर शुल्क बढ़ाया जा सकता है. सरकार ने लगभग 100 वस्तुओं की एक लिस्ट तैयार की है, जिनमें इंजीनियरिंग सामान, इस्पात उत्पाद और मशीनरी के अलावा सूटकेस और फर्श सामग्री जैसी उपभोक्ता वस्तुएं शामिल हैं, जिन पर प्रोत्साहन देने पर विचार किया जा सकता है |
भारत सरकार क्यों लेने जा रही ये फैसला?
इनमें से कई प्रोडक्ट्स पर आयात शुल्क वर्तमान में 7.5 फीसदी से 10 फीसदी के बीच है. यह कदम देश के व्यापार घाटे में लगातार हो रही वृद्धि के मद्देनजर उठाया गया है. वित्त वर्ष 2026 के अप्रैल-नवंबर में भारत ने 292 अरब डॉलर मूल्य का सामान निर्यात किया, जबकि इसी अवधि में 515.2 अरब डॉलर मूल्य का सामान आयात किया, जो बाहरी कमजोरियों को लेकर पॉलिसी मेकर्स की चिंता का सबब बना हुआ है. विचार-विमर्श से परिचित एक व्यक्ति ने बताया कि उद्योग को अपनी सप्लाई चेन में एक ही स्रोत पर निर्भरता कम करने और स्थानीय स्रोतों को विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है. इस्पात उद्योग के एक प्रतिनिधि ने कहा कि समस्या कुछ स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं की लो क्वालिटी और आयात के मुकाबले अधिक कीमतों की है |
चीन बना हुआ है सबसे बड़ा सिरदर्द
चीन कई कैटेगरीज में प्रमुख सप्लायर बना हुआ है. उदाहरण के लिए, भारत ने वित्त वर्ष 2025 में 20.85 मिलियन डॉलर मूल्य की छतरियां इंपोर्ट कीं, जिनमें से 17.7 मिलियन डॉलर चीन से मंगाई गईं. 2024-25 में चश्मे और गॉगल्स का इंपोर्ट लगभग 114 मिलियन डॉलर का था, जिनमें से लगभग आधा चीन से आया और एक महत्वपूर्ण हिस्सा हांगकांग के रास्ते भेजा गया, जबकि इटली तीसरा सबसे बड़ा सप्लायर रहा. कुछ कृषि मशीनरी के भारत के आयात में भी चीन की हिस्सेदारी 90 फीसदी तक है. यह असंतुलनब बाइलेटरल ट्रेड में भी साफ देखने को मिलता है. वित्त वर्ष 2026 के अप्रैल-नवंबर में भारत का चीन को माल निर्यात 12.2 बिलियन डॉलर था, जबकि आयात 84.2 बिलियन डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 72 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ |

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