नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई सूर्यकांत ने न्यायिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक ढांचे की स्वदेशी व्याख्या की है। उन्होंने लोकतंत्र की तुलना एक पारंपरिक चारपाई से की, जहां मजबूत लकड़ी का फ्रेम, टिकाऊ पायों और लचीली लेकिन मजबूत रस्सियों के सहारे एक ऐसा ढांचा तैयार करता है जो कड़ा भी है और लचीला भी। सीजेआई के मुताबिक यही संतुलन भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका की असली शक्ति है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सीजेआई सूर्यकांत हरियाणा में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम में एक अनोखा सत्र आयोजित किया गया था, जिसमें सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के 13 जज केशवानंद भारती केस की ऐतिहासिक बहस का री-एनैक्टमेंट करने के लिए एक साथ मंच पर आए थे। इस सत्र में उस बहस को पुनर्जीवित किया गया जिसने भारतीय संविधान में ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ का सिद्धांत स्थापित किया था।
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि केशवानंद केस में भारत संवैधानिक जीवन के सिर्फ 23वें वर्ष में था। एक ऐसा राष्ट्र जो अपने संस्थानों को परिभाषित कर रहा था, आदर्शवाद और शक्ति के बीच संतुलन साधना सीख रहा था। उन्होंने कहा कि असल सवाल एक सभ्यतागत प्रश्न था- क्या संसद का बड़ा बहुमत संविधान के नैतिक डीएनए को फिर से लिख सकता है?
सीजेआई ने अमेरिका और ब्रिटेन में भी समय-समय पर एक्जीक्यूटिव द्वारा न्यायिक स्वतंत्रता की सीमाएं परखने की बहस का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केशवानंद केस की 13 जजों की बेंच ने संवैधानिक परिपक्वता और नैतिकता दोनों का रास्ता चुना। उन्होंने संविधान को सुविधा के हिसाब से मोड़ने से इनकार कर दिया। इसी एक संयम ने दिखाया कि लोकतंत्र को बुद्धिमान बनने के लिए बूढ़ा होने की जरूरत नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि केशवानंद फैसला न्यायपालिका की स्वतंत्रता के दो केंद्रीय पहलुओं को उजागर करता है। पहला- निर्णय लेने में स्वतंत्रता और दूसरा- संस्थागत स्वतंत्रता। जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि न्यायाधीशों का आचरण बेंच पर भी और बेंच से बाहर भी न्यायपालिका की छवि को तय करता है। उनका कहना था कि जज का आचरण सिर्फ कानूनसम्मत नहीं, बल्कि उससे ऊपर होना चाहिए। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि देश की आर्थिक मजबूती तभी सुनिश्चित होती है जब सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय तीनों मिलकर एक त्रिमूर्ति की तरह संतुलित हों।

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