
रायपुर
भगवान से आशा भी करते है और संदेह भी, संसार के लोग सवा लाख लड्डू चढ़ाकर अपनी मन्नत मांगते है भगवान से, संसारी लोग पाने के लिए सीढ़ी समझते है, भगवान को। भगवान की चरणों में जिस दिन भक्ति मांगेंगे उस दिन जो नहीं मांगा है वो सब मिल जाएगा। तत्व के ज्ञान को समझ गए तो भक्ति अपने आप आ जाएगाी।
श्रीराम कथा प्रसंग में मैथिलीशरण भाईजी ने श्रद्धालुओं को बताया कि मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बार-बार एक बात कही है कि भरत जी के समान और दूसरा कोई नही। भरत चरित्र में पृथ्वीलोक के जीवन चक्र को जोड़कर उन्होंने कई बातें बताई। सारी दुनिया राम-राम जपती है लेकिन स्वयं भगवान राम, भरत जी का नाम जपते है। भगवान की चरणों में रति के लिए जो आपको वैराग्य दे रहा है उसे कभी ये न बोले कि तुमझे ऐसी आशा नहीं थी। उसके प्रहार से विरक्ति मिली उससे बड़ी बात और क्या। ऐसे लोगों की कभी निंदा न करें जो आपको भगवान की चरणों में ले जा रहे है। भरत समेत सबने केकैयी की निंदा की है पर लक्ष्मण ने कभी नहीं की। दोनों की भावना का केंद्र राम है, लेकिन लक्ष्मण जी को राम मिल गए और भरत से चले गए। इस व्याख्या को समझें सुख में भगवान के नाम की विस्मृति हो गई तो दुख और दुख के क्षण में स्मृति रह गई तो यह सुख का परिणाम है। भक्त और ज्ञानी में कोई भेद नहीं है जैसे दशरथ और जनक। जिस दिन तत्व के ज्ञान को समझ लिया भक्ति अपने आप आ जाएगी।
अखंड को देखकर स्मृति और खंड को देखकर विस्मृति हो जाती है। स्वरुप की स्मृति ज्ञान और विस्मृति अज्ञान, जिस दिन इस के स्वरुप को समझ लिया आपका आनंद कभी खंडित नहीं होगा। सद को आने से असद को नहीं, यही तो विवेक की जागृत अवस्था है। बिना सत्संग के विवेक नहीं मिलता। रामजी के मिलने पर सुख और न मिलने पर दुख का अनुभव तभी जीवन का कल्याण है, यदि दूसरे की सुख के लिए कार्य कर रहे है तो भला हमें दुख कैसे मिलेगा।
सुगम अगम मृदु मंजु कठोरे ।
अरशु अमित अति आखर थोरे ।।
राम को वनवास के बाद सब चाह रहे थे कि भरत राजकाज सम्हाल ले लेकिन भरत ने मना कर दिया, फिर भी लोग नाराज नहीं हुए, इसलिए कि उन्हें मालूम है भरत जी के लिए भगवान की इच्छा से बढ़कर कोई दूसरा है ही नहीं।
घर-परिवार को टूटने न दें-
कथा प्रसंग के बीच में भाईजी ने बताया कि आज घरों में पिता और बेटे के बीच तक इतनी दूरियां बढ़ गई है कि उनका अहंकार टकराता है। कम उम्र में बच्चे घर छोड़कर भाग रहे है। पिता चाहता है हमारी बात चले और बेटा चाहता है हमारी। अहम का तिरष्कार कर दें, स्वभाव और प्रभाव में बड़प्पन लाए तो घर-परिवार को बिखरने से बचाया जा सकता है।
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