बिलासपुर : हाईकोर्ट ने High Court Review Petition Misuse को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए एक सरकारी कर्मचारी की रिव्यू याचिका खारिज कर दी है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि जब किसी फैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं हो, तब केवल दोबारा सुनवाई के उद्देश्य से रिव्यू पिटीशन दायर करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
यह मामला सरकारी कर्मचारी संजीव कुमार यादव से जुड़ा है, जिनके खिलाफ विभागीय जांच हुई थी। दोषी पाए जाने पर उनकी चार वेतनवृद्धियां रोकने की सजा दी गई। इस सजा को चुनौती देते हुए उन्होंने पहले हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में याचिका दायर की, जो जनवरी 2025 में खारिज हो गई। इसके बाद डिवीजन बेंच में रिट अपील दाखिल की गई, जिसे मार्च 2025 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई, लेकिन अगस्त 2025 में वहां से भी राहत नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बावजूद याचिकाकर्ता ने एक बार फिर हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि रिकॉर्ड में किसी प्रकार की तथ्यात्मक गलती साबित नहीं होती। ऐसे में यह याचिका केवल कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करने वाली है।
कोर्ट ने यह भी कड़ी टिप्पणी की कि अलग-अलग चरणों में अलग वकीलों को नियुक्त कर बार-बार याचिकाएं दायर करना बार की स्वस्थ परंपरा के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि रिव्यू पिटीशन को अपील की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा बिना शर्त माफी मांगने पर कोर्ट ने दो लाख की जगह 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। यह राशि गरियाबंद स्थित सरकारी विशेषीकृत दत्तक ग्रहण एजेंसी को देने का आदेश दिया गया है। एक माह में राशि जमा न होने पर इसे भू-राजस्व की तरह वसूल किया जाएगा।
इस फैसले के जरिए हाईकोर्ट ने साफ संदेश दिया है कि High Court Review Petition Misuse को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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