पटना: एक ताज़ा वैज्ञानिक अध्ययन ने बिहार में एक खतरनाक वास्तविकता उजागर की है स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में यूरेनियम-238 (U-238) नामक रेडियोधर्मी तत्व पाया गया है. ये शोध पटना के महावीर कैंसर संस्थान (MCS) और अन्य संस्थाओं द्वारा किया गया है, जिससे चिकित्सकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों में गहरी चिंता की लहर दौड़ गई है.
शोध के मुख्य निष्कर्ष
• अध्ययन के दौरान 40 स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध के सैंपल लिए गए, जिनकी उम्र 17 से 35 वर्ष के बीच थी.
• ये नमूने छह जिलों — भोपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा — से लिए गए थे.
• हर एक सैंपल में यू-238 पाया गया, और इसकी मात्रा 0 से 5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर के बीच रही.
• जिलेवार विश्लेषण में यह क्रम पाया गया है (सबसे अधिक से कम): कटिहार > समस्तीपुर > नालंदा > खगड़िया > बेगूसराय > भोजपुर
• स्वास्थ्य जोखिम का आकलन करने पर पता चला कि लगभग 70% नवजात शिशुओं में गैर-कैंसर संबंधी (non-carcinogenic) खतरे की संभावना है.
• हालांकि, अध्ययन में कैंसर-जोखिम (carcinogenic risk) का स्पष्ट संकेत नहीं मिला.
जानिए क्या हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात शिशु अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनका शरीर अभी पूरी तरह से विकसित नहीं है और उनके अंदर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की क्षमता कम होती है. एक मेडिकल विशेषज्ञ और अध्ययन के सह-लेखक, डॉ. अशोक शर्मा (AIIMS, नई दिल्ली) ने कहा है कि हालांकि यह चिंता की बात है, फिर भी स्तनपान बंद करने की सलाह नहीं दी जाती है. उन्होंने स्पष्ट किया कि संतुलित दृष्टिकोण ज़रूरी है और माँ का दूध अभी भी बच्चों के लिए सबसे पोषणयुक्त स्रोत है.
महावीर कैंसर संस्थान के डॉक्टरों ने भी कहा है कि स्तनपान को जारी रखना चाहिए, और केवल तब बंद किया जाए जब क्लीनिकली कोई ज़रूरत हो.
संभावित स्रोत और कारण
शोधकर्ताओं ने सीधे पानी या भोजन के स्रोतों का परीक्षण तो नहीं किया, लेकिन संभावना जताई है कि दूषित भूजल (groundwater) इसका एक प्रमुख स्रोत हो सकता है.पहले के अध्ययनों में भी बिहार के भूजल में यूरेनियम प्रदूषण की शिकायतें सामने आई हैं, और यह धरातलीय चट्टानों, उर्वरकों व अन्य मानवीय गतिविधियों से जुड़ी हो सकती है.

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